सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन से जिजाऊ माता (शिवाजी महाराज की मां )के
जन्मदिन तक दस दिवसीय जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है . नारे लगाते हुए
,नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जोर शोर से कार्यक्रम की शुरुआत अपने अपने तरीके
से की जाती है .बोरखेडी व मोताला{बुलडाना } में विगत पन्द्रह वर्ष से
जन्मोत्सव का आयोजन लेखिका ,कवयित्री व प्राचार्य के नेतृत्व में किया
जाता है .इस बार का आयोजान दामिनी को समर्पित किया गया है .दामिनी की
जीवटता ,जीने के भरपूर हौसले और बलात्कारियों से जी-जान से लड़ने के जज्बे
को स्त्री ताकत का प्रतीक माना गया .वह मरते दम तक जीना चाहती थी ,उस चाहत
को सलाम .
सावित्रीबाई ने पढ़ना लिखना सिखा और लड़कियों की पहली शाला खुलवाने में पति की सहयोगी बनकर पहली महिला शिक्षिका बनी .
1जनवरी 1848 को पुणे के भिड़े वाडा में जब जोतिबा और सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए पहली स्कूल की शुरुआत की तो छ; छात्राए कक्षा में थी ,अन्नपूर्णा जोशी ,सुमति मोकाशी ,दुर्गा देशमुख ,माधवी थत्ते ,सोनू पंवार ,जनि करडीले धनगर.स्कूल खुलते ही असंतोष के साथ'' धर्म डूबा दिया ..धर्म डूबा दिया ..''का हल्ला मचा.
स्त्री को पढ़ने का हक़ दिलवाने के लिए दोनों ने अपनी जान पर खेलकर स्कूल चलाई .
13 जनवरी 1852 को पुणे के कलेक्टर की पत्नी मिसेस जोन्स की अध्यक्षता में तिल-गुड कार्यक्रम का आयोजन सावित्री बाई ने किया जिसमे सभी जाति और धर्म की महिलाओं को एक जाजम पर बैठकर जाति/धर्म के भेदभाव को तोड़ने का अभिनव क्रांतिकारी मुहीम को नया आयाम दिया .
सावित्रीबाई ने अपमान ,उपहास ,गंदगी झेलकर विधवा विवाह ,विधवा और अविवाहित स्त्री के बच्चों के पालनाघर चलाकर जो काम किया .
सावित्रीबाई के बदौलत आज लडकिया पढ़ रही ,आगे बढ़ रही है .वह नींव रखी नहीं होती तो आज स्त्री समानता का नारा बुलंद न होता .......
विजयालक्ष्मी वानखेड़े ने मराठी में सावित्रीबाई फुले पर शोध परक पुस्तक '' युगस्त्री'' में कई महत्वपूर्ण तथ्य /घटना की खोजकरपुस्तक के अभाव की पूर्ति की .
12 जनवरी को शिवाजी महाराज की मां जिजाऊ माता के जन्मदिन पर समापन करते हुए मैदानी और मानसिकता परिवर्तन के आव्हान के साथ आगे बढ़ने के इस संकल्प को सलाम .
इरादे अटल हो तो तयशुदा जीत का,क्रांति का ज्योति का दिन है ये, .सावित्रीबाई का दामिनी का इरोम का मलाला का .....लडती हुई भंवरी का ,फूलन का .. सोनो सोरी का ..झलकारी बाई का ...हर उस लड़की का जो हासिल करना चाहती है अपना हक़ का ..दिन है उल्लास का ..जश्न का ..जीत का ...मनु के खिलाफ ,हर उस सोच जो कि खामोशी में सिसककर घुटनभरी जिंदगी जीने को मजबूर करती है उसके विरूद्ध लड़ाई के आगाज का..दिन है सावित्रीबाई का .
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
3 जनवरी को बोराखेड़ी गाँव और मोताला में सावित्री-जिजाऊ जन्मोत्सव की शुरुआत की गई जिसकी चित्रमय बानगी .
डॉ . विजयालक्ष्मी वानखेड़े के नेतृत्व में सफल आयोजन किया गया .मनीषा पाण्डेय के रिजेक्ट करती हु ,तथा विजयालक्ष्मी वानखेड़े का मदर मिशन के बैनर पर शब्दाकार देने के अलावा उसे यात्रा में अभिव्यक्त किया गया .चलित नाटक का प्रदर्शन किया गया .दामिनी को समर्पित इस आयोजन से लड़की के साथ समभाव व्यवहार करने में परिवार की भूमिका सर्वोपरि मानते हुए घर के भीतर लैंगिक समानता स्थापना का आव्हान करते हुए लड़कियों को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने ,लड़ने और कुछ बनने के लिए प्रेरित किया .
फोटो ..गणेश झंवर ...के साभार
<photo id="1" />
सावित्रीबाई ने पढ़ना लिखना सिखा और लड़कियों की पहली शाला खुलवाने में पति की सहयोगी बनकर पहली महिला शिक्षिका बनी .
1जनवरी 1848 को पुणे के भिड़े वाडा में जब जोतिबा और सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए पहली स्कूल की शुरुआत की तो छ; छात्राए कक्षा में थी ,अन्नपूर्णा जोशी ,सुमति मोकाशी ,दुर्गा देशमुख ,माधवी थत्ते ,सोनू पंवार ,जनि करडीले धनगर.स्कूल खुलते ही असंतोष के साथ'' धर्म डूबा दिया ..धर्म डूबा दिया ..''का हल्ला मचा.
स्त्री को पढ़ने का हक़ दिलवाने के लिए दोनों ने अपनी जान पर खेलकर स्कूल चलाई .
13 जनवरी 1852 को पुणे के कलेक्टर की पत्नी मिसेस जोन्स की अध्यक्षता में तिल-गुड कार्यक्रम का आयोजन सावित्री बाई ने किया जिसमे सभी जाति और धर्म की महिलाओं को एक जाजम पर बैठकर जाति/धर्म के भेदभाव को तोड़ने का अभिनव क्रांतिकारी मुहीम को नया आयाम दिया .
सावित्रीबाई ने अपमान ,उपहास ,गंदगी झेलकर विधवा विवाह ,विधवा और अविवाहित स्त्री के बच्चों के पालनाघर चलाकर जो काम किया .
सावित्रीबाई के बदौलत आज लडकिया पढ़ रही ,आगे बढ़ रही है .वह नींव रखी नहीं होती तो आज स्त्री समानता का नारा बुलंद न होता .......
विजयालक्ष्मी वानखेड़े ने मराठी में सावित्रीबाई फुले पर शोध परक पुस्तक '' युगस्त्री'' में कई महत्वपूर्ण तथ्य /घटना की खोजकरपुस्तक के अभाव की पूर्ति की .
12 जनवरी को शिवाजी महाराज की मां जिजाऊ माता के जन्मदिन पर समापन करते हुए मैदानी और मानसिकता परिवर्तन के आव्हान के साथ आगे बढ़ने के इस संकल्प को सलाम .
इरादे अटल हो तो तयशुदा जीत का,क्रांति का ज्योति का दिन है ये, .सावित्रीबाई का दामिनी का इरोम का मलाला का .....लडती हुई भंवरी का ,फूलन का .. सोनो सोरी का ..झलकारी बाई का ...हर उस लड़की का जो हासिल करना चाहती है अपना हक़ का ..दिन है उल्लास का ..जश्न का ..जीत का ...मनु के खिलाफ ,हर उस सोच जो कि खामोशी में सिसककर घुटनभरी जिंदगी जीने को मजबूर करती है उसके विरूद्ध लड़ाई के आगाज का..दिन है सावित्रीबाई का .
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
3 जनवरी को बोराखेड़ी गाँव और मोताला में सावित्री-जिजाऊ जन्मोत्सव की शुरुआत की गई जिसकी चित्रमय बानगी .
डॉ . विजयालक्ष्मी वानखेड़े के नेतृत्व में सफल आयोजन किया गया .मनीषा पाण्डेय के रिजेक्ट करती हु ,तथा विजयालक्ष्मी वानखेड़े का मदर मिशन के बैनर पर शब्दाकार देने के अलावा उसे यात्रा में अभिव्यक्त किया गया .चलित नाटक का प्रदर्शन किया गया .दामिनी को समर्पित इस आयोजन से लड़की के साथ समभाव व्यवहार करने में परिवार की भूमिका सर्वोपरि मानते हुए घर के भीतर लैंगिक समानता स्थापना का आव्हान करते हुए लड़कियों को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने ,लड़ने और कुछ बनने के लिए प्रेरित किया .
फोटो ..गणेश झंवर ...के साभार
<photo id="1" />
No comments:
Post a Comment