..................................................................................... कैलाश वानखेड़े
Monday, February 18, 2019
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झोपड़पट्टी के मासूम फूलों का झुंड
जिंदगी,झोपडपट्टी की अंधेरी संकरी गलियों में कदम तोड़ देती है और किसी को भी पता नहीं चलता है।जीवन जिसके मायने किसी को भ...
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शब्द प्रभुनों . शब्दों से जलते है घर ,दार ,देश और इंसान भी / शब्द बुझाते है शब्दों से जले हुए इंसानों को / शब्द न होते तो आँखों से ग...
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'' ओ खसकेल..भाग जल्दी वरना तेरको भूत ले जायेगा . उड़ाके..उप्पर...आसमान में...
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मेरे माथे पर नहीं लिखा है लेकिन मेरा चेहरा बोलता है बोलते है घुसर फुसुर करते हुए सैकड़ों मुहँ धारी पढ़ लेते है कागजात पता लगा लेते है ...
1 comment:
पुस्तक के संकलन में मानव पीड़ा एवम आत्म बल पर जोर दिया गया है।साधुवाद कैलाशजी
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