Friday, March 25, 2022

सैराट /sairat/nagraj popatrov manjule

 

               प्रेम पानी से तरबतर सैराट

                      -कैलाश वानखेड़े

मेरे पास शुरूआती शब्द नही है.सैराट के अंत के बाद निशब्द हो गया था.सबकुछ इतना अचानक हो गया था कि नन्हीं आकाश  जब घर से बाहर निकलते हुए रो रहा था. तब तक भीतर का बहुत कुछ टूटकर बहने की बजाय अटक गया था. अबोध बालक  के पैर के निशान सड़क पर नही समाज के थोबड़े पर दिख रहे थे.लाल रक्तिम.वह चलती जा रहा था .वह रो रहा था  और गली सुनसान थी.मल्टीप्लेक्स में अँधेरा और सन्नाटा था,मुर्दा शांति से भरा हुआ.फिर लोग उठने लगे.मै बैठा रहा. चुप था।लोग जा रहे थे।बैठा रहा मै।जैसे भूल गया था अपने आपको।अपने घर को।शहर को।नोकरी को।मन को।और जब गेट बंद करने वाला आया तब लगा अब तो जाना होगा।उठना होगा. दिमाग बंद था।जबान पर ताला जड़ दिया था।
उठा और चप्पल ढूंढने लगा।रोशनी थी और मेरी चप्पल मुझे दिख नही रही थी।बस चुप था कि लगा,वो जो मारे जा रहे थे वे कौन थे?

मनुष्य..?

इस देश में किसी इंसान को किस रूप में पहचानते है.नाम से या शक्ल से.उसके काम से.क्या किसी मनुष्य को जानना इतना पर्याप्त नही है कि वः एक इंसान है?सच बताना नाम के साथ सरनेम जानकर और क्या जानना चाहते हैउसका धंधा या उसकी हैसियत ? आखिर क्या परेशान करता है नाम सरनेम विहीन आदमी  से स्त्री से?

आप सोचियेगा,आपका दिमाग उसके बारे में कौन कौन सी जानकारी इकठी करना चाहता है?

तो नागराज बड़े ही खिलदंडे अंदाज से माइक पकडकर परश्या की तलाश में हमें लगा देते है.परश्या एक झलक देखने की हसरत में हैंडपंप चला रहा है.कई बर्तन बिना डिमांड के भरकर दे रहा है.तमन्ना की भरी पूरी नदी से भरा हुआ है कि बस एक बार आर्ची दिख जाए.एक बार दीदार कर लू.ख़्वाब नींद में अब बडबडाने लगे है कि दोस्तों के साथ घरवालों को पता चल गया कि कालेज के पहले साल का यह मासूम किशोर अब इश्क की राह पर निकल गया है.इतना आगे पहुँच गया है कि उसने एक ख़त लिख दिया.

ख़त.

प्रेमपत्र.जो लिखे नही जाते है,उसने लिख दिया.प्रेम करना और उसे खत में अक्षरों से हकीकत करना,कितना मुश्किल हैवो जानते  है जिन्होंने इश्क किया लेकिन लिख नही पाए एक प्रेम पत्र.आपने किसी से प्रेम किया है?

प्रेम...

और आर्ची उस ख़त को लिए बिना हर बार एक सवाल भेजती है,उस तुतलानी वाली उम्र के लडके के हाथ जिसके हाथ में परश्या का पहला प्रेमपत्र है.ख़त पढ़ा नही गया और सवालों की लाइन राजमार्ग पर सरपट भागती है कि दर्शक को लगता है,अब क्या?जिज्ञासा,कौतुहल..क्या रिस्पांस होगा?वे सब चुप हो जाते है जिन्होंने प्यार किया लेकिन इजहार नही किया.हिम्मत नही हुई.ताकत नही थी कि लिख दे एक ख़त.चार लाइन की बजाय अढाई अक्षर के साथ एखाद कोई लाइन.लाइन लिख नही पाने की हसरत ताउम्र लिए बैठे थे कई,वे जो उम्र के अंतिम पड़ाव में या अधेड़ हो गए कि जिन्दगी से बेदखल हो चुके थे.जबकि जो इश्क में थे वे जानते है उस ख़त में क्या होगा,इसलिए वे प्रेम पत्र लिखते नही.

ख़त,एक अनुरोध,एक निवेदन,एक मन,एक सपना,एक हसरत,एक जिन्दगी,एक विश्व  ही तो है.सबकुछ है प्रेमपत्र.जवाब मिले न मिले लिखा ही जाना चाहिए कि परश्या  जिसकी मां मछली बेचती है.खुशियाँ लाती है.बाप अपना घर मछली पकड़ने से चलाता है. मां बाप का सपना..पढ़ेगा तो कुछ बनेगाअमूमन यही सपना देखा भोगा जाता है.जीवन यही है,यही माना है बापों ने.माओ ने और लड़का है कि लड़की के चक्कर में पड़ जाता है.लड़की प्यार में शिद्दत से डूब जाती है कि सभी समाज में पगला जाती है.जो प्रेम करते है वो पागल होते है.पागल न बने अपने बच्चे,इसके लिए तमाम जातन करते है.बिगड़  न जाये लड़की?अपने मन से जीने न लग जाए.कहाँ जीवन जिया है अपनी मनमर्जी से माओ बापों ने.वे अपनी जीवन का सबसे बड़ा बदला अपनी औलाद से लेते  है.इसलिए बचपन से सिखाते है.आज्ञाकारी बनाने के लिए हर संभव हथियार का इस्तेमाल करते है.और यहाँ सैराट में  गाने बजते है.स्वप्नदृश्य का मनोहारी संसार में गीत के बोल किसी अनाम फूल  के झाड से इस तरह झरते है कि पुरे सिनेमा हाल में बिखर जाते है. फुल,पेड़ आसमान और सूखा हुआ दरख्त पर परश्या और आर्ची की बजाय खुद बैठ जाता है.वे जो प्यार करना चाहते थे वे,वे जो प्यार के लिए दो बोल नही पाए.वे जो अपनी पसंद से शादी  नही कर पाए वे..वे सब जो मनुष्य है.वे सब कैमरे के भीतर उस जगह पहुँच जाते है जहाँ से खुद को खुद की खबर नही मिलती.शब्द मिलते है जो इतने धीमे से दिमाग के अंदर दाखिल हो जाते है कि दिल की धडकन के सिवा कुछ सुनाई नही देता.

और तभी दलित कविता,नामदेव ढसाल से केशव सुत पढ़ाने में डूबा  हुआ प्रोफेसर लोखंडे को एक लड़का दिखता है.जो सबसे बेखबर होकर मोबाइल पर बात कर रहा है.वे उससे पूछते है कौन हो तुम?वह लड़का जवाबी शब्दों के लिए जबान चलाने की बजाय अपना हाथ चलाता है.सटाक...गाल पर थप्पड़...लडके को यह बेहद अपमानजनक लगता है कि कोई उससे पूछे,तुम कौन हो?और लड़का चला जाता है.नाम है प्रिंस.उसी कक्षा में बैठी है आर्ची .बैठा है परश्या.और कई छात्र छात्राए.कोई आवाज नही आती.शाम ढले बुलाते है प्राचार्य और प्रोफेसरों को प्रिंस के पिता कि सब पहचान ले प्रिंस को ताकि इस तरह गुस्सा दिलाने वाला सवाल कोई प्रोफ़ेसर न कर सके.अन्यथा प्रिंस का गुस्सा न जाने क्या कर बैठे.गर्वित है पिता,शर्मसार है बहन.

श्रेष्ठता की ग्रन्थी प्रिंस का स्थाई मुकुट में तब्दील हो जाती है

उसी घर का नाम है अर्चना.अर्चना बोले तो आर्ची.

उस घर के कब्जे में है दूर दूर तक पसरा हुआ खेत,जिसमें गन्ने है.केले है और भी बहुत कुछ.गन्ने की खेती मतलब शक्कर कारखाना.शक्कर के उत्पादान के साथ है कॉलेज.बड़ी बड़ी शैक्षणिक संस्थाओ का अर्थ है डोनेशन जो पढने और पढ़ाने वालों से लिया जाता है.शैक्षणिक संस्थाओं के निजीकरण का दूर तक पसरा हुआ खेत.जो जीवन में एक बार बोया  जाता है और जब चाहा तब काटी जाती है फसल. और इन सबका कुल जमा है सत्ता.अर्थतंत्र का गठजोड़ के साथ यहाँ की गरीबी का असली कारण सामाजिक असमानता का स्वर जो लोगों को सुनाई नही देता है,

  यह सोलापुर जिले की इसी पृष्ठभूमि के साथ मुखर होता है. सोलापुर का अर्थ पंढरपुर के दर्शनाभिलाशी रमाबाई और अम्बेडकर का संवाद, कवि संत चोखामेला,लेखक योगिराज वाघमारे जी से मुलाक़ात और मेरे पिता द्वारा लाइ जाने वाली सोलापुरी चादरे है.सोलापुर की सीमा कर्नाटक से लगी है.ये सारी बाते और इनका असर. गाँव क़स्बा और लोग...यही के है.इन्हीं बातों से बने बिगड़े है. सैराट का वातावरण.वेशभूषा में जो मेहनत है वो सोलापुर के मन को उतार देती है रुपहले पर्दे पर.फिल्म में वेशभूषा आर्थिक स्थिति,सामाजिक जीवन का बयान है.

सोलापुर का शहर हैकरमाळा. उसी तहसील के एक गाँव में नागराज का जन्म होता है.इसी कस्बे में फिल्म जवान होती है.बार्शी सोलापुर उस्मानाबाद की सडक और कस्बे के भीतर जाकर पता चलता है अर्थतंत्र मुट्ठीभर लोगों के कब्जे में है और ढेर सारे मजूर. कम मजदूरी. ढेर सारा काम.तभी तो तीखी सब्जी का है वर्हाड़.वर्हाडी सब्जी मतलब पानी मांगने के लिए बेबस हो जाये.पानी पानी करती है जबान.

पानी

पानी किसके घर का पीना चाहिए.जाति व्यवस्था में खानपान दुसरे पायदान पर है.पानी जिसके घर पीना है,वह कौन है?जो पी रहा है वो कौन?

आर्ची जब परश्या के मां से पिने के लिए पानी मांगती है.तब मां बेटी की शक्ल पर जाति का इतिहास पढने को मिलता है.वही आर्ची का मौसेरा भाई को पानी पिलाने के लिए दादी कहती है,कि वो पाटिल(मराठा)है.तब बुढिया कहती है,मराठा को प्यास नही लगती?

आर्ची को प्यास नही लगती लेकिन वो परश्या के घर का पानी पीकर इस खतरनाक लाइन को तोड़ देती है.

     तो उस समाज में,जो सोलापुर का होने के बाद भी देश के किसी भी जगह का हो सकता है,वहां प्रेम करने लगता है परश्या.आर्ची को उसके बहतर फीसदी अंक होने की बात रोमांचित करती है.उसका अंदाज और मासूमियत के बीच कब ये प्रेम खिलदंडता के साथ अपने  उफान पर आ जाता है,पता ही नही चलता क्योंकि वे अपने आसपास के ही प्रेमी है.आसपास के प्रेमी का प्रेम देखना एक सपना है और इसे साकार करते है नागराज.इस समाज में प्रेम को गुनाह माना जाता है और अपनी जाति में हो तो वरदान समझ लेता है.इसलिए सयाने लोगबाग प्रेम सोच समझकर करते है.अपनी बिरादरी की अनिवार्य शर्त के बाद उसकी औकात अगर ठीकठाक है तो इस प्रेम को विद्रोह का नारा बनाने में कोई देर नही लगती.अकस्मात भी नही लगता है कि ऐसे प्रेम नियोजित षड्यंत्र होता है जो आपस में एक दुसरे ही के खिलाफ बुना जाता है.उस माहौल में मछली दूकान पर परश्या की मां को आत्या’(पिता की बहन) बोलते हुए प्रणाम करने के तरीके से तय कर देती है आर्ची की मंजिल.गाँव में रहते हुए वो रायल इनफील्ड चलाती है.परश्या के घर आकर  पानी  पीकर कहती  है,परश्या की मां बहन को कि वह अकेली जा रही है खेत में ट्रैक्टर चलाते हुए.अकेली..हाँ..अकेली ..कि परश्या आ जाए गन्ने के खेत में.प्रेमिका की हिम्मत, इतनी है कि क्लास में या पीटी करते हुए वह जमाने भर को ठेंगा दिखाती है.कालेज में आर्ची से दूर रहने की सलाह देकर भीड़ परश्या की पिटाई करती है तो कहती है,किसी ने भी इसे हाथ लगाया तो उसकी खैर नही.  और तमाम जोखिम उठाकर प्रिंस के बर्थ डे पर अपने घर बुलाती है.जहाँ झींग झींग झिन्गाट बजता है और अजय अतुल अपने संगीत से हर किसी को नचवाने के लिए आमंत्रित करते है.यह बिंदास नाच है.बिन्घास्त गाना है,जिस पर झूमझूमकर नाचना ही है... 'फैंड्री'  में  ढपले पर जब्या के साथ नाचता है नागराज अब परश्या के साथ.ये ठेठ देसी नाच है.इसमें अकेला व्यक्ति अपने साथ अपने समूह के साथ एकाकार होकर खो जाता है,नाच में संगीत में ,गीत में.इसमें मन है,उत्साह है और ढेर सारा आनन्द. अपने हिसाब से अपने मन की सुनने वाली ये बिंदास हवा ही है सैराट.किसी की परवाह किये बिना जीने की उद्दाम लालसा का साकार रूप यहाँ आकर जीने लगती  है कि बैठे बैठे पैर थिरकने लगते है.और यही से सैराट का दूसरा हिस्सा शुरू होता है.यही से प्रेम का मतलब पता चलता है.यही पर परश्या और दोस्तों की जानलेवा पिटाई होती है.यही से पता चलता है कि परश्या ने बिना सोचे बिना गणित के प्रेम किया है.सजा तो मिलनी चाहिए क्योंकि यह विजातीय प्रेम है.गैर दलित लड़की से प्रेम...इज्जत पर डाका.रक्तशुद्धता के तमाम जकडबंदी को तोड़ने का अपराध.तमाम परम्परा,संस्कृति को चुनौती देकर बाप की उस मर्दानगी पर सवालिए निशान लगने लगते है, जो अपनी बेटी को अपनी सम्पति मानता है.जब चाहेगा जिससे चाहेगा उससे शादी करवाने का उसे ठेका मिला है,उसको ध्वस्त करने पर जो तिलमिलाहट है वह कई गुना इसलिए बढ़ जाती है कि परश्या उस जमात का प्रतिनिधित्व करता है जिसे हाशिये पर रखा गया है,जिसे गाँव बाहर सडने के लिए छोड़ दिया.जिसकी बार्डर तय है,वह बार्डर तोड़कर रक्त शुद्धता के महान सिद्धांत की ऐसी की तैसी कर देता है.जाति की बात इस बर्बरता को और बढ़ाती है जब गन्ने के खेत में सलीम कहता है,वो तुझे गाड देंगे...यह भरोसा है सलीम को.इस अपराध की सजा में जवखेडा से लेकर ठेठ तमिलनाडु तक टुकड़े टुकड़े करने में कोई हिचक नही होती है,महानता का इतिहास का ढोल पीटने वालों को.यह तब और अपने बर्बरतम रूप में दिखती है कि इस प्रेम की सजा मां बाप को मिलती है.अंतरजातीय प्रेम,आख़िरकार परश्या के बहन की शादी न होना और परिवार को अपना गाँव छोड़कर जाना ही पड़ता है.अब गाँव बाहर भी नही रह सकते.सीमा रेखा पार  भी नही.दिखना नही चाहिए.दिखा तो जान ले लेंगे.मुझे मेरे ममेरे भाई के बेटे का अपराध याद आता है.घर छोडकर उनका रहना दिखता है.सब घटित होता है,मेरे भीतर.

आख़िरकार पकडे जाते है दो दोस्तों के साथ आर्ची परश्या.आर्ची को ममेरा भाई बताता है,बलात्कार,अपहरण का केस परश्या पर लगा दिया है.आर्ची उसी आक्रमकता से थानेदार से लडती है.मैं ले गई थी परश्या को.अपनी मर्जी से गई थी.उसे और साथियों को छोड़ दो.बाप तमाम हैसियत के बाद भी निरीह दिखता है.वे बाप वो व्यवस्था चाहते है परश्या और उसके दोस्त जेल में सड जाए.जेल, न्यायपालिका, पुलिस...जिन्दगी बर्बाद करने के लिए काफी है.छुड़ाती है सबको.जो साहस है,पहल है,हिम्मत है,वह सारी आर्ची में डाल दी लेखक निर्देशक ने.

आर्ची साहस की हर सीमा तोड़ने वाली लड़की का नाम है.अपनी जिन्दगी अपनी शर्त से जीने वाली लड़की है.वो लड़की जिसे कोख में मारने के बाद भी अपराधबोध से ग्रसित नही होता है समाज.वो लड़की जिसे  पैदा होने के बाद मूलभूत अधिकार से वंचित किया जाता है.जिसे प्राइवेट प्रापर्टी मानकर दान किया जाता है.जिसे पिता की सम्पति में कोई हिस्सा नही दिया जाता है.क्योंकि लड़की,मनुष्य नही सम्पति है.जिसे एक उम्र के बाद उस घर में नही रहना है.पराया धन है.अब उसकी अर्थी ही आनी है.उस समाज की आँख से  सिर्फ आँख मिलाते है नागराज मुन्जाले. वे जो करते  आ हे है तय,कथा,पटकथा.दलित व्यक्ति का जीवन,भूमिका,व्यवहार.उनको यह नागवार लगता है कि हीरो के रूप में दलित क्यों?यदि दलित ही रखना था तो फिर कथित ऊची जात की लड़की को प्रेमिका क्यों बनाया...क्यों?

विवाद क्या इस बात पर होना चाहिए

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 16 मई 2016 

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