Monday, June 5, 2017

गोलमेज



            
                       
         ''ओ खसकेल..भाग जल्दी वरना तेरको भूत ले जायेगा.उड़ाके..उप्पर...आसमान में.  चल रे भूतालिया आ गया.''चौथे को अनसुना कर पहला गोल गोल घूमती हुई हवा देखता रहा  जिसमें कागज, पोलीथिन ,कचरा,धूल और बहुत सा कुछ उड़ रहा है.तभी उसे लगा वह भी उड़कर देखे.उड़ने की ख्वाहिश में उस तरफ भागा और घुमती हुई हवा में घुसने की कोशिश करने लगा लेकिन भवरे की तरह घूमती हवा गोलाकार होती हुई तेजी से दाई तरफ बढ़ने लगी .उसके पीछे पीछे पहला भागने लगा. धूल के साथ साथ कंकड भाग रहे है.पहला, धूल हवा कंकड़ की मार खा रहा है.उसे लगने लगा उसकी जिंदगी में कंकड़ इस तरह न आये तो वह उड़ लेगा दूर आसमान में,नीले आकाश में,उड़ते बादलों में, पतंग की तरह.उसे देखकर चौथा फिर चिल्लाया, ’’पगलेट...मरेगा क्या?’’अभी भी पहला रोमांचित है.नहीं सुनता. उसका मन उड़ान यात्रा में है.हवा तेज गति से दोनों तरफ से आई थी.आकर कसकर आलिंगन किया.पलभर में ही सम्पूर्णता का अहसास कर दोनों दिशाओं की हवा मिलकर उड़ने लगी.जहाँ जाती वहां पर जो होता,उससे मिलती और ले जाती.जिसे अपने साथ ले जाना संभव नहीं होता उसे अहसास करा देती कि हम तो चले है, चल सको तो साथ हमारे चलो.यही पर ऐसा ही कुछ सुन रहा है  पहला.कोई सपना कभी दिमाग  में रखा था उसे हकीकत में बदलने के लिए वह गोल गोल नृत्य करती हवा आकाश की तरफ जा रही है, में,घुसने के लिए भागने लगा.हवा गोल आकार को विस्तार देने लगी. धूप खाने के लिए लटके हुए कपडे भी उड़ने लगे.किधर जाऊ क्या करू? सूझ नहीं पड रहा है,फैलती और लम्बी होती आकाश की तरफ बढ़ने लगी हवा. सफ़ेद कपड़ों में लिपटी औरत इसी तरह उडती हुई समुन्दर के किनारे पहुच गई थी,तेरे इश्क में हय..तेरे इश्क में.... तेरे इश्क...
       चौथा उसकी कॉलर पकड़कर खींचता हुआ ले जाने लगा.पहला हवा के साथ दौड़ते हुए  आसमान में जाने की चाह में था लेकिन अब हवा दूर होती जा रही है और उसके साथ आसमां में जा रहे है धूल,कागज ,पोलीथिन,कुछ कपडे. उडनेवाले ओझल होने लगे तो पहला अब पेड़ों को देख रहा है.उसे पूरी तरह से सुनाई दे रहा है पेड़ों के गाने.आपस में पेड़ों को चिल्लाते हुए नाचते हुए महसूस कर रहा है .भूतालिया चला गया लेकिन हवा तेज चल रही है. पहला चल रहा है जैसे सफ़ेद बादल.सीमेंटेड सडक बेहद चौड़ी है. इतनी कि क्रिकेट,सितोलिया जैसे खेल खेले जा सकते है.उसे सडक आसमान की तरह विशाल लगी.सड़क किनारे मकानों के सामने और भीतर कार ही कार है.किनारे खड़ी कार के पास फुटपाथ के बीच में पेड़ ही पेड़ है.कोई भी बच्चा नहीं जान पाया उन पेड़ों के नाम.पत्ते है उनमें,लेकिन न फल है न फूल. किसी पेड़ के पत्ते ही ऐसे है कि उन्हें फूलों की जरुरत नहीं.जब फूल का काम पत्तियां करे तो फूल के पेड़ को क्यों रखे? पहला पेड़ों को और चौथा दूसरे और तीसरे को देख रहा है, बोल रहा है,चिल्ला रहा है.दूसरा और तीसरा,कोने में खड़े हो गए है.
        वे चार है,नौ से उप्पर और बारह तक की उम्र के. घर मोहल्ले की रेंज से बाहर के एरिया में उछलते कूदते हुए अपना मन का किया करते है.सभी की हाईट कमोबेश एक जैसी ही है.घरवालों को फुरसत न मिली कि उनकी उंचाई नापते या देखकर अंदाजा लगाते.स्कूल से तो खैर उम्मीद ही नहीं है.पहला और तीसरा पढने में तेज है,ऐसा दूसरे और चौथे को सुनाया जाता था.डरा डराकर नसीहत दी जाती थी कि उनके जैसा पढ़.पहले और तीसरे को उन दोनों से दूर रहकर मन लगाकर पढ़ने की हिदायत उनके घर के भीतर घूमती रहती.चारों ने घरवालों की हिदायतों को कभी नहीं माना. अपने मन की मानी.आज जब निकले तो दिमाग के भीतर कोई प्लान या टारगेट नहीं था,हमेशा की तरह.न ही चलते हुए गा रहे थे.तीखी धूप को गाली देकर सफ़ेद बादल आकाश को कैद करने लगे तब चौथे ने चिल्लाकर कहा,’’भागो रे...कौन सबसे आगे जाता है...भागों ...’’पहला वाला बादलों में खोया था.वह कैद करने का  तरीका समझने में लगा था.वह अक्सर इसी तरह सोचता और उसमें खो जाता.वह हवा को भी समझने में कई घंटे लगा देता.चेहरे से, नाक से अपने भीतर के फेफड़े से अंदाजा लगाता.सवाल अपने से करता.वो अँधेरा, यह हवा किस तरह आती है,धूल क्यों फटाक से उठकर हवा के संग संग जाती है.कई चीजें,कई बातों में खो जाना,उसकी फितरत बन गई.
        ''अबे रुक...देख आम का पेड़.''पहला खुश होकर बोला गोया की प्यारा दोस्त दिखा हो.सडक किनारे फुटपाथ के पास में है आम का पेड़. दीगर पेड़ की लाइन इससे दूर है.फुटपाथ पर मकानों की जालियों,गेट और उससे आगे पेड़ों की लाइन है.’’तो .’’चौथा बोला और उसने आम के पेड़ में लटके हुए बहुत सारे कच्चे आम देखे. बढ़ते हुए आम.उन्हें अपनी उम्र की दहलीज पर खड़े दिखे.तीसरा बोला,गद्दर है. चौथा बोला कच्ची कैरी और जमीन से लगभग उछला जबकि पहले वाला आम का पेड़ है, यही सोचकर आल्हादित हुआ.उसने अपने साथ पत्तियों का होना महसूस किया जो उस वक्त हवा के साथ मस्ती कर रही है.चौथे ने दूसरे को जल्दी आने के लिए आवाज लगाईं और पेड़ पर सरपट चढने लगा.दूसरा भागकर आया और जैसे तैसे पेड़ पर चढ़ गया. 
       किसी बंगले का कोई खुला हुआ दरवाजा हवा के कारण बज रहा है.किसी बंगले में फ़र्श रगड़ते हुए धोने की आवाज आ रही है.बंगले से बच्चों-बड़ों की न आवाज आ रही है न ही उनकी परछाई दिख रही है.सब बंद है.पाश कालोनी है.इसी वक्त किसी लोहे के दरवाजे से एक बड़ा कुत्ता निकला.कुत्ते को  देखते ही डर गया पहला.पहले के अलावा किसी का ध्यान इस तरफ नहीं है.दोनों उप्पर है और तीसरा उन्हें देख रहा है. तीसरे को पहले ने कुत्ता दिखाया.कुत्ते को देखते ही तीसरा बुरी तरह से डर गया.हो न हो उन्हें भगाने लिए कुत्ते को भेजा हो.उसकी आवाज बंद हो गई.पहले ने आवाज लगाईं.’’नीचे उतर..चल बे.''दरवाजे को बंद कर लड़की निकली.उसने कुत्ते के गले में बंधी चेन पकड़ी हुई है.तीसरे ने झट से लडकी को पहचान लिया,अरे ये तो अपने मोहल्ले की है. पांचवी गली में रहती है.तभी तीसरे को लगा वह तो चारों में सबसे बड़ा है.उसके इस दावे को खारिज किया जाता था हर बार.बड़ा नहीं माना गया उसे लेकिन फिर भी वह खुद को सरकारी कागज के आंकड़ों के आधार पर बड़ा मानता रहा.इसी तर्क के आंकड़े ने लड़की को देखा और देखता रहा.लड़की के हाथ में मोबाइल है दूसरे हाथ में कुत्ते को कंट्रोल करने वाली चेन.लड़की का नहीं है मोबाइल. मालकिन ने दिया है.इतने महंगे कुत्ते को लेकर लड़की कहाँ पर  है?यह मालकिन घर के भीतर लडकी को देखे बिना जानती है.मोबाइल में जीपीएस सेट है.लडकी जहाँ जहाँ जायेगी उस जगह को मालकिन  अपने मोबाइल में देख सकती है.वह कुत्ते को घर से बाहर ही करवाती है.कुत्ता चार पांच चक्कर लगाने के बाद अपनी तयशुदा जगह पर करता है.करने का यही वक्त है लेकिन कुत्ता बच्चों को देखकर असहज हो गया.कुत्ता भौंका नहीं जैसे कि दोनों बच्चों को आशंका थी. अपनी बाउंड्री से बाहर अजनबी को देखकर नहीं भौंका करते है, बड़े मकानों के कुत्ते.क्या लेना देना पडौसियों से?मालिक का अनुसरण कर रहा है कुत्ता या कुत्ते का अनुपालन मालिक?
       कुत्ता इधर उधर जाता है,सूंघता है.लड़की को अच्छा लगा कि सुनसान रहने वाली गली में कोई आया है.सड़क पर है एक उम्मीद.तीसरा उसे देखता जा रहा है.पहले ने सोचा, दुबली पतली लड़की ने इतने खतरनाक  कुत्ते को कंट्रोल में कैसे रखा?उसकी कोई बत्ती जली, लडकियां कितनी जल्दी सीख जाती है कुत्तों को कंट्रोल में रखना..और पहला,तीसरे को देखकर मुस्कुराया.
             टहनियों से चिपके हुए दोनों बच्चे मौज मस्ती कर झूमते पेड़ के साथ झूम रहे है.पेड़ पर इस तरह झूमने का यह अलग अनुभव रोमांच दे रहा है.आम को देखते ही पकड़ते,तोड़ते और नीचे कैच करवाने के लिए फेंक देते.पेड़ पर कई आम को वे पकड नहीं पाते.एक हल्का सा स्पर्श होता और टहनी आम को दूर ले जाती.एक स्पर्श की चाह में ताकता हुआ तीसरा मन ही मन बोला,गद्दर है.पहले ने उप्पर देखते हुए कहा,''उतर बे. भोत हो गए.चल बे चल.''पेड़ पर चढ़े  दोनों सारे आम तोड़ने के सपने को हकीकत करने में लगे है.वे जवाब तक नहीं दे रहे है.चौथा आम तोड़कर बोला,’’ ले पकड़...’’तीसरा उस लड़की से बात करना चाहता है. लडकी हायर सेकेंडरी में पढती है.
       खिडकियों को बंद करने की खडखडाहट के साथ किसी की तेज भागती  घालमेल होती भुनभुनाती आवाज है,जो सूखाने के लिए डाले हुए कपड़ों  को उतारने के साथ आ रही है. कामवाली बाई से उम्मीद करती हुई कि उसे तो पता होना ही चाहिए. तेज हवा का सीजन है,तो कपडे ऐसी जगह न डाले...इसी उम्मीद में बडबडाती स्वर लहरियों के बीच इस मकान के मालिक की नजर नुकीले लोहे की जालियों में से बच्चों पर पड़ी.पहले ने आगाह किया,’’भोत टेम हो गया.चल.अबे इत्ते सारे आम कैसे ले जायेंगे?’’
      ''तेरी बुशट उतार...तू तो छोड़ बे.ओ तेरी बनियान हाँ हाँ टीशट उतार.उसका मु बंद कर.फिर सारे आम उसमें डाल देंगे...अबे तू सुन रिया क्या #$%^.''ऊपर से तीखेपन से तीसरे पर चौथा चिल्लाया जिसमें उम्मीद थी.घर था.मां थी.भाई बहन थे.शाम थी. रोटी के साथ अचार था,टेस्टी वाला.पहले वाले के पास चिंता थी.फ़िक्र थी दोस्तों की.तीसरे का मन नहीं है इस आदेश को मानने का.कई कारण इकठ्ठा हो गए उसके पास.लड़की का होना,फिर बड़ा होकर भी छोटे की बात मानना,टीशर्ट का नया होना. कल ही नंदा नगर से टीशर्ट खरीदी थी उसकी माँ ने.जामुनी रंग के आधे हिस्से के बाद फीका हरा रंग और जो डिजाईन है वह ‘’क्रास‘’जैसी है.लड़के को टी शर्ट के ख़राब होने और फटने का भी डर सताने लगा.उसने कहा,मै नी देता ..जा.’’
     ’’ठीक है मत दे,कल से अपना थोबड़ा भी मत दिखाना.भाग स्साले..चल तू ही शट उतार.’’चौथा कड़का.निशाना सीधा लगा.तीसरे ने गाली देते हुए अपनी टी शर्ट देखी. उतारे या नहीं..उसने लड़की को देखा और सलमान खान की याद आते ही टीशर्ट उतारकर उप्पर उछाला ..ले ..लेले.’’
         पहला टीशर्ट की गरदन दोनों बाहों से बांधकर आम डालने लगा.‘’उतर उतर,वो देख.’’धीमी सतर्क आवाज में कातरता है.लड़की के चेहरे पर परिचित से लडको के प्रति सहजता है लेकिन उसके साथ वाला कुत्ता अभी भी असहज है.पहला कुछ आम भरकर टीशर्ट का मुँह बंद करने की जदोजेहद में लग गया.रस्सी बांधने से ही मुँह बंद होगा लेकिन रस्सी नजर नहीं आ रही.रस्सी जैसा कुछ दिख जाए मिल जाए...सोचते हुए उसकी नजर सड़क किनारे के कचरे में चली गई.
    लोहे का दरवाजा खुलते वक्त चुप है कि चप्पल भी बेजुबान हो गई.पहले वाले को इस खामोशी पर ताज्जुब हुआ. उसके घर की गली में इंसान के चलने की आवाज घरों के भीतर,गली के मोड़ पर बाआसानी सुनी जाती है.इनके घर,दरवाजा और चप्पल की तरह ये भी चुप ही रहेंगे, यह सोचकर पहले की आवाज का वाल्यूम बढ़ गया.’’मकान वाली..उतर बे.’’बंगले के दरवाजे से बेहद धीमी आती हुई महिला,क्रीम रंग पर निचुडा हुआ बैंगनी रंग के फूलों से भरा गाउन को हल्का सा उठाती हुई आ रही.पैर उठाने का संघर्ष कर रही है.पैरों में गाउन उलझ न जाये,चलते हुए फिसलने का भय है या बाहर बच्चों की शक्ल में चोर लुटेरे होने की आशंका जो वृद्ध की हत्या के पुराने समाचार से गाढ़ी और ताज़ी हो गई.ठीक ठीक समझ नहीं पाया पहला. उसे लगा,जितने जल्दी हो निकल जाए लेकिन न रस्सी मिली न इतनी ताकत जो आमों को लेकर भाग सके.तीसरा आ गया पास में. कही हताशा थी कि खामोश होकर लड़की को ही देखता जा रहा है.रेंज से बाहर ही है लड़की.कुत्ता सार्वजनिक रूप से सार्वजनिक जगह पर मल विसर्जित नहीं कर पा रहा है और लड़की को देर हो रही है.लड़की ने सलवार सूट पहना है,जिसका रंग डार्क होने से समझ नही आ रहा है.सूट गंदा नहीं है लेकिन इस तरह के रंगों के बारे में लोग सोचते है ये गन्दा होने पर भी गंदा नहीं दिखता. कुछ चीजें बाते ऐसी ही होती है,जिसके बारे में बहुत कुछ ऐसा ही सोचा जाता है,जैसा वह होता ही नहीं.
         पहले वाले ने देखा इसी लोहे के दरवाजे के पास काले रंग के चमकीले पत्थर पर सुनहरे रंग से लिखा है,गोदकर. बड़े अक्षर में, 
                                      ‘’मंगल मूर्ति
                                        मोहन माहेश्वरी
                                                                               ,डीबी स्कीम नं.५४
 इसी दरवाजे से बाहर आती हुई महिला को पीछे छोड़ते हुए लाठी के सहारे तेज क़दमों से वृद्ध आ रहा है.मतलब ये मोहन माहेश्वरी है.मतलब ये आगे आयेंगे मतलब इनसे बोलना होगा यानि क्या बोले?इस प्रक्रिया में लग गया पहला.पेड़ से उतरकर तोड़े हुए आम की हिफाजत करने के लिए चौथा आगे आया.किसी मकान के गंदे कपडें और झूठे बर्तन के साथ धूल को भगाकर तेजी से आती हुई महिला दिखी जो पिछली गली की है. जान पहचान वाली होने से तीसरे ने अपने भीतर साहस को देखा.पहले को अजनबी पेड़ों में आम का पेड़ अपना लगा था वैसे ही लगी महिला.बिना आवाज दिए बिना बुलावे के आ गई.महिला ने आते ही बिखरे हुए आम को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. गजब की फुर्ती और तेज दिमाग की मालकिन को देखकर पहला आसपास के मकान देखने लगा, पडौस में दीवार पर टांगे हुए पतरे के बोर्ड पर है,ठा.दौलतसिंह शक्तावत,कुंडला हाउस.सामने है अग्निहोत्री भवन.उसके पास राधा कृष्ण मंदिर सडक के खत्म होने वाली जगह पर दिगम्बर जैन मंदिर है जो राधा कृष्ण मंदिर  से कई गुना ज्यादा भव्य है .तभी पास आ गया मकान से निकला हुआ आदमी.महिला ने साड़ी के पल्लु को पेट की तरफ खोंसकर बिखरे आम को डालना बंद किया बाकि आम टीशर्ट में डालती हुई बोली,’’चलो.. ऐसे ही दोनों मिलके उठाओं.’’ खुले हुए मुँह को पहले ने पकडा दूसरा छोर दुसरे ने पकड़कर उठाया.तभी वृद्ध ने कहा,’’येss.. ये ss..रख आम इधर.ओ तेरको ही बोला है..निकाल आम.’’ वृद्ध में भारी गुस्सा भरा हुआ है मगर मानने को कोई तैयार नहीं है.
    ’’ये आम कैसे तोड़ लिए है? अपना बाप का माल समझ रखा है?आम यहीं रखों.’’झुकी हुई कमर के साथ लाठी के इशारे से बोलते वृद्ध के सिकुडे हुए बदन पर कुर्ता है.एक बच्चे के एक धक्के से वृद्ध को गिराकर भाग सकते है,दूसरे ने सोचा और शरारत से भर गया.यह सब जानते है कि आम उठाकर ले जाए तो वृद्ध उन्हें रोक पाने में शारीरिक रूप से असमर्थ है.यह वृद्ध भी जानता है.बच्चे और महिला को लगा बोलबालके मामला निपटा देते है.
   ‘’उधर क्यों रखे आम?’’ चौथे ने आते ही बोला,उसके हाथ में टेलीफोन का काला तार है. उसे रस्सी बनाने का इरादा लेकर आया है.
  ’’सीधे तरीके से बोल रहा हूँ मान लो.आम यही रखके भागों यहाँ से.’’ ‘’नी जाते.अब  बोलो.’’चौथा बोला तो वृद्ध ने कहा,’’पुलिस को बताता हूँ,अभी. ‘’वृद्ध के चेहरे पर चमक बढ़ी कि डर के हथियार से बच्चों की हिम्मत काट रहा हूँ कि रीढ़ की हड्डी सीधी होने का अहसास होने लगा.‘’यही रख.’’लाठी से दिशा और जगह बताते हुए बोले वृद्ध.ये पिद्दी बच्चे मान क्यों नहीं रहे उसकी बात,सोचा और पेड़ को देखने लगे.
   ‘’नी रखना.’’चौथे ने काले तार को सीधा करते हुए कहा.
    ‘’रख..वरना?’’वृद्ध ने अपनी आवाज में धमकाहट लाते हुए कहा तो तत्काल चौथा बोला,‘’वरना क्या?’’चौथे की आवाज से निकली ध्वनि.आँखों के भीतर का ताप इतना तेज है कि वृद्ध को लगा अब बोलकर डराना आसान नहीं फिर भी पत्नी से कहा,’’अरे जरा मोबाइल देना मेरा.’’ जिसे सुनना था वह सुन नहीं पाई. तभी आम की तलाश में निगाह डालती महिला बोली,’’ बाबूजी जाने दो.आम तो हवा से गिरे है.हम नी ले जाते तो कोई भी ले जाता.आम ही तो है.’’
   ‘’आम है तभी तो.पत्तियां ले जाते तो कुछ नही बोलता.जानवरों को खिलाते तो पैसा और पुण्य  मिलता.’’वृद्ध बोला तो पहले ने कहा,’’आम के पत्ते जनावर नी खाते.’’
       ‘’तू चुप कर.अरे आम के पत्ते ले जाओ.घर के दरवाजे पर पत्तों की माला लटकाओ. बरकत बढ़ेगी.पैसा आएगा तो ऐसे भटकना नहीं पड़ेगा.जाओ मंदिर में प्रसाद लो.भगवान का आशीर्वाद लो.हाथ जोड़कर माफ़ी मांगों भगवान से कि अब चोरी नी करेंगे.भाग्य सुधर जाएगा.भाग्य.’’ वृद्ध असफल हो चुके थे.सम्मानजनक तरीका अपनाना चाह रहे है इसलिए उनकी आवाज में मृदलता आई.
      ‘’चोरी..? किसने की चोरी? हमने नी की चोरी.नी जाना मंदिर.नी लेना प्रसाद वरसाद. चलों रे.’’चौथा बोला तेजी से.
     ‘’चुप..अधर्मी.बुजुर्ग से ऐसा बोलते है?ये पाप है.पाप करे और माफ़ी न मांगे भगवान से.नरक मिलेगा नरक.’’गुस्सा आ गया फिर वृद्ध को.
     ‘’बच्चों से ऐसा बोलते है? वैसे भी अभी कौन से स्वर्ग में है?आप हमारी चिंता मत करों.’’पहले ने अपनी खामोशी को हटाकर गुस्से को पीते हुए कहा.
       ‘’अभी लगाता हूँ मोबाइल.चौराहे पर होगी पीसीआर.एक मिनिट में आएगी और ले जायेगी थाने.वही बताना चोरी की थी कि नहीं. ओ बाई तू समझा ले नादान को.इसके चक्कर में सब जायेंगे जेल.जेल से निकलना मुश्किल कर दूंगा.’’वृद्ध ने डराने के लिए आवाज में कडकपन और भरोसा भरकर कहा.डर के साथ भ्रम हावी होने लगा,पहले और चौथे को छोड़ बाकि पर.तभी महिला बोली,‘’कोई चोरी की?डाका डाला,जो इतना डरा रहे हो सेठजी?अरे आम ले जा रहे है.धरम मंदर परसाद की बात करते हो तो समझों तुमने पुन्य कर डाला.इतने  बडे मकान वाले को कायकी कमी?’’
    ‘’ये झाड तो तुम्हारा नी है,फिर ये आम तुम्हारे कैसे?’’महिला के बोलने के बाद तत्काल चौथा बोला तो वृद्ध के चेहरे की चमक उतरी लेकिन इतने आगे आ गए कि अपनी बात से पीछे जाना मुश्किल लगा इसलिए हार न मानते हुए कहा,’’ये पेड़ मेरा है.मैंने लगाया है मैंने मेहनत की है.जो लगायेंगा,वही खायेगा.जो खायेगा वही मालिक होगा.आई समझ में ?’’
    ‘’ये जगे सरकारी है.सरकारी जगे के झाड भी सरकारी है. सरकारी झाड के आम भी सबके है.’’चौथे ने कहा जबकि उसके दिमाग में चल रहा है कि कच्चे आम से वृद्ध का सिर फोड़ दे, अब सहन नहीं हो रहा है उसे.ये बातों से समझ नही रहा है. सरकार की तरफ से काटी गई कालोनी में सड़क के दोनों छोर पर जालीदार गेट लगाकर बोर्ड पर लिखा गया,यह आम रास्ता नहीं है. ये पूरी तरह से गलत है लेकिन कहे कौन.
    ‘’ये तो झूठ है.ये समझ लो तुम सब,मरते मर जाऊँगा लेकिन सारे आम तो नहीं दूंगा...अच्छा ठीक है,चलों ऐसा करते है,तुम्हारी जेब में जितने आम आ जाए उतने ले जाओं और बाई तू भी तेरे पास जितने है,उतने ले जा.बाकि बचे हुए आम यहाँ इधर रख.‘’वृद्ध मान चुका है ये आम नहीं देंगे इसलिए समझौता करना ही पड़ेगा.जितने भी आम मिलेंगे वह समझौते से ही मिलेंगे,यही सोचकर समझौते में महिला को ज्यादा फायदा देकर इस गठजोड़ को तोड़ने में विरासत से प्राप्त ज्ञान का सदुपयोग कर वृद्ध ने ख़ुशी हासिल की.
   ‘’हाँ हाँ ठीक है.चलो बे चलते है.’’आम तोड़ने ,भरने या बोलने में जिसका कोई लेना देना नहीं है उस तीसरे ने कहा लेकिन सभी ने अनसुना किया तो हताशा से भरी उपस्थिति दर्ज करवाकर तीसरे ने कहा,’’मैंने तो पहले ही रख लिए आम अपनी जेब में.और नी चीये आम.मै तो चला.मेरी टीशट दे ..चल शाम को मेरको दे देना.’’तीसरा जाने लगा लड़की को देखते देखते.
    ‘’तेरको जाना है तो तू जा लेकिन हम तो सारे आम ले जायेंगे.पुलिस को बुलाना है तो बुला लो.’’चौथा बोला.तीसरा रुका नहीं.चला गया.लड़की सब सुन रही है.वह कुत्ते का मल विसर्जन न होने के कारण दूर खड़ी थी.
    लड़की ने इसी साल स्कूल में पढ़ा था,गोलमेज सम्मेलन,पूना पैक्ट.सर की बात याद आने लगी थी.पूना पैक्ट को डिटेल में बताने की बात पर सर ने कहा था कोई मतलब नही ज्यादा समझने का.परीक्षा में दो नम्बर से ज्यादा का सवाल कभी नही पूछा जाता है.तुम लोग तो इतना सा याद रखों कि येरवडा जेल में डॉ.अम्बेडकर और गांधी जी में एक समझौता हुआ था जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है.ये गोलमेज सम्मेलन की असहमति के बाद का है.इसके बाद लडकी को घर में अपने कम पढ़े लिखे पिता ने पुरे विस्तार के साथ पूना पैक्ट बताया था.गांधीजी के आमरण अनशन में मरने की नौबत आई और कैसे दबाव में ये सब हुआ.लड़की की आँखों में पिता का चेहरा दिखने लगा.पिता बताते बताते चुप हो गए कि हमारे साथ धोखा किया गया.
   आम वाले इस मामले को सुनकर न जाने कैसे गोलमेज सम्मेलन याद आया. कुत्ते का शौच हो जाने के बाद लड़की को लगा, अब उसे इन लोगों के पास आ जाना चाहिए.
     वृद्ध ने चौथे को नजरअंदाज कर तीसरे को सुनाते हुए कहा,’’ये है समझदार..’’फिर दूसरे और महिला को देखते हुए कहा,’’चलो सब की बात छोड़कर ऐसा करते है.ये मेरा पेड़ है. जमीन मेरी है फिर भी आधे आम तुम सबको देता हूँ और बाकि आधे मै रख लेता हूँ. बस आधे...ठीक है.मैं तो तुम सब लोगों की भलाई चाहता हूँ.हमारे घर में झाड़ू पोंछा वाली बाई से पूछ लेना,वो बर्तन साफ़ करने आती है.वो बता देगी कितने दयालु है हम.हम बचा हुआ खाना फेंकते नहीं ,उसी दे देते है.अन्न का अपमान नहीं करते और तो और वो सड़क गटर साफ़ करनेवाले से पूछना उसे तो हर महीने पचास रूपये देते है. मैंने सबका भला कर उद्धार किया है.’’वृद्ध ने असफलता ढंकने के लिए साधू की तरह कहा.  
      ‘’पचास रूपये देकर कौन सा उद्धार किया है? कोई उद्धार नहीं किया है.आपकी जरुरत थी इसलिए ये सब किया है.’’लड़की के भीतर का गुस्सा अचानक ही निकला वो आते से बोली.लडकी को अनसुना किया वृद्ध ने और कहने लगे, ‘’सुबे सुबे झाड़ू लगाकर वो झाडूवाला गिरे हुए आम ले जाता है लेकिन कभी भी मना नहीं किया उसे ...अरे इतना उदार रदय है हमारा और ये छोकरी पता नहीं क्या क्या बोल रही है?चलो...न तेरी न मेरी.और अब अगर मेरी बात नहीं मानोंगे तो मजबूर होकर पुलिस को पडौसियों को गार्ड को सबको बुलाकर तुम सबको जेल में डलवा दूंगा. तेरको चोरी चकारी के अलावा आता क्या है?’’ नम्रता समझाइश से भरे समझौते का असर नहीं होता देख भय दिखाया.वृद्ध जानता है ये एक मोहल्ले के होकर भी सब अलग अलग गलियों के है,ये एक नहीं हो पायेंगे इसलिए फिर बोले,’’ये गली तुम्हारी है?ये मोहल्ला तुम्हारा है,आये कैसे इधर?’’
    ‘’ये आसमान तुम्हारा है?ये हवा तुम्हारी है? भूतालिया जैसी बात कर रहो हो.गोल गोल?’’पहला बोला तो जवाब ही नहीं सूझ पड़ा वृद्ध को.इसी बंगले की मालकिन अभी भी खड़ी है समझने के लिए कि सुनाई नहीं देता है बिमारी की वजह से लेकिन दरवाजे से आगे जाए या न जाए यह फैसला नहीं कर पा रही है.घर की दहलीज लांघकर कभी नहीं बोली मालकिन.अब इस उम्र में आकर पति से बोलना चाहती है, आ जाओं..जाने दो लेकिन जबान निकलने से पहले इजाजत चाह रही है.तभी लड़की ने कहा,‘’बाबूजी ये आम का पेड़ आपने नहीं लगवाया.मेरी माँ इस्सी गली में काम करती थी बरसो से.वो बताती है,यहाँ पे जब कोई मकान नहीं बना था तभी से है आम का झाड.अपने आप उगा था. इसलिए पेड़ पर न तो आपका हक़ है न जमीन आपकी है.आप याद करोगे तो सब याद आ जायेगा.’’ लड़की ने इधर उधर होते कुत्ते को कंट्रोल करते हुए कहा.
      लडकी की बात सुनकर  वृद्ध तैश में आकर बोले,‘’तू कौन होती है बीच में बोलने वाली?तू तो हमारे बीच बोल ही मत.’’इस सड़क पर जैसे आम जन आ नहीं सकता वैसा ही दो के लफड़े में तीसरा नी टपके,यही सोचा वृद्ध ने लेकिन लड़की उतने ही अधिकार से बोली,’’बाबूजी ये मेरे मोहल्ले के है. मेरे है.’’ 
    ‘’तू तो चुप कर.पढ़ और पढ़ा ले लेकिन सड़क पर बोलेगी तो काम से निकलवा दूंगा.आई समझ में.’’आगबबूला हो गया वृद्ध.
     ‘’आपमें दम होगा तो निकलवा देना. डराना वराना मत.यह पूना नहीं  है कि बोलोगे मर रहा..मर रहा हु...बोलबोलकर समझौता करवा लोगे.ये जेल नहीं गली है गली..वह भी खुली हुई.लोहे के गेट लगाने भर से,गार्ड बैठाने से गली न तो बंद होती है न जेल बन जाती है.’’लड़की निर्भयता से बोली.उसके दिमाग में पिता की बातें थी.चेहरा था.दुबली पतली लड़की आम का मजबूत पेड़ लगी पहले को.वह देखता ही रह गया मगर वृद्ध लड़की की मजबूती से अनजान बनते हुए कहा,‘’पूना? फ़ालतू बात मत कर.चार क्लास क्या पढ़ ली, लगी चपर चपर करने.तू तो हट.चलो तुम लोग मान रहे हो या बुलाऊ पुलिस को?’’ वृद्ध ने आक्रमकता से डराना चाहा लेकिन उनका चेहरा बता रहा है, निराशा ही मिली लेकिन अब वापस जा नहीं सकते. चुप रह नहीं सकते.क्या करे?
   ‘’चार नहीं हायर सेकेंडरी में हूँ.जानती हु सब.सब आप जानते है.तब दया की थी हमारे बाबा ने और आपने धोखा.तब आपने बेजा जिद न की होती तो आज हम यहाँ खड़े नहीं होते. अपने घर में पढ़ रहे होते...यही बता दो ,अब कौन ले जाता है आम?ये पडौसी..इनको तो आप कुछ नहीं बोलते. बड़े लोगों को आप बोल ही नहीं सकते है और हमें ही ज्ञान दे रहे हो.पेड़ सबका है.आम सबके है. जो चाहे वो आम ले जाए.’’लड़की के मोबाइल की घंटी बजी. मालकिन बुला रही है.लडकी रिसीव नही करती कॉल.चौथा लड़का बोलता है,’’ये सच्ची बोलती है.तुम्हारा झाड है ही नी तो देने वाले तुम कौन? हम तो सब ले जायेंगे फिर जो चाहे वो कर लो.’’कि बजते हुए मोबाइल पर उभरते आंकड़ों की अकड निकालती हुई लड़की कहती है,चमकती स्क्रीन को देखते हुए,‘’ये कोई गोल टेबल नहीं है कि बात ही बात करते रहेगे.हो गई बात.अब ये बापूजी कुछ नी कर पायेंगे.तुम लोग तो ले जाओ.’’लड़की ने कहा फिर मोबाइल पर बोली,’’जी मैडम, दरवाजा खोल दिया है.आ रही हूँ.’’
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झोपड़पट्टी के मासूम फूलों का झुंड

                     जिंदगी,झोपडपट्टी की अंधेरी संकरी गलियों में कदम तोड़ देती है और किसी को   भी पता नहीं चलता है।जीवन जिसके मायने किसी को भ...