Wednesday, January 29, 2014

बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर

गलती मेरी ही है 
माथा मेरा ही खराब है सुबे से 
जिसे उल्टा कहा जाता है उसका उत्तर 
मै तो बस सीधे सीधे बुलंद के बाद शहर ही लिखना चाह रहा था 
बायमिस्टेक शहर की बजाय भारत लिख गया 
विज्ञापन का कहे या बजाज का असर 
जैसा बनाया जाता है वैसे ही निकलता है 
बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर ...प्रतिभा प्रतिभा मेरिट मेरिट 
चिल्लाते चिल्लाते खेत में लड़की के कपड़े फाड़े गए 
जबकि झंडा है मेरे देश का 
बोला ही गया और बोलनेवाले की जान लेने के लिए ही चली थी गोली
उसमें बारूद नहीं ग्रन्थ थे
आप देख पाए न देख पाए
आपकी मानसिकता और चश्मा जो भी देखे कहे
आपको तो मालूम ही नहीं
खेत सिर्फ बुलंदशहर में नहीं है
लड़की सिर्फ एक नहीं है करोड़ों में
चुप है कि लगता है आपको कि
व्यवस्था में चौथा वर्ण नहीं है
तभी तो बनाए रखने के लिए लोकतंत्र
वह चौथा खम्बा भी लापता हो गया खुद ही
बदन से कपडे तन से जान चली गई लेकिन
अभी भी है साबुत जबान और है गरिमा से जीने की चाह
जबकि नहीं गया बुलंदशहर
बुलंदशहर मेरे भीतर आकर चिल्ला रहा है
बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर
और लिख देता हु बुलंद शहर की बुलंद तस्वीर ....

झोपड़पट्टी के मासूम फूलों का झुंड

                     जिंदगी,झोपडपट्टी की अंधेरी संकरी गलियों में कदम तोड़ देती है और किसी को   भी पता नहीं चलता है।जीवन जिसके मायने किसी को भ...