Friday, September 20, 2013

शब्द प्रभुनों ---कवि वामन निम्बाळकर

शब्द प्रभुनों .

शब्दों  से जलते है घर ,दार ,देश और इंसान भी /
शब्द बुझाते है शब्दों से जले हुए इंसानों को /
शब्द न होते तो आँखों से गिरे न होते आग के गोले /
न बहता आंसुओं का महापुर /
आता न कोई करीब /
जाता न दूर ,,
शब्द न होते तो ...
---कवि  वामन निम्बाळकर
--अनुवाद -कैलाश वानखेड़े
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 ''शब्द '' 
  'शब्‍दांनीच पेटतात घरे, दारे, देश /
आणि माणसेसुद्धा /
शब्‍द विझवतात आगही /
शब्‍दांनी पेटलेल्‍या माणसांची .शब्‍द नसते तर पडल्‍या नसत्‍या/ 
डोळ्यांतून आगीच्‍या ठिणग्‍या/ 
वाहिले नसते आसवांचे महापूर /आले नसते जवळ कुणी, /
गेले नसते दूर /
शब्‍द नसते तर''
 - कवी वामन निंबाळकर

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