Saturday, July 7, 2012

आलतू फालतू ...आ बला को टाल तू ..पाँच सौ परसेंट सिर खपाऊ


       दो दिन पहले आ गई थी .लेकिन ईट सीमेंट कागज के कारखाने में बनाते-बिगाड़ते  हुए पता ही नहीं चला .सड़क किनारे अलसाये पड़े गढ्ढों ने खबर की. कि उसका दायित्व था जो जिसे निभाने की बात भूल चूका लेकिन उसी से पता चला और उससे कोई पूछता भी नहीं उससे ....
कौन पूछता है कि गैंग बनाकार आप गालियों को जस्टीफाई क्यों करते हो ?इसे सहज सामान्य और नेचुरल बताते बताते भूला देते हो कि दलित साहित्य में आपको गाली के अलावा कुछ दिखता ही नहीं ? क्यों नहीं दिखता कि आपने पढ़ा ही नहीं समझा ही नहीं लेकिन फ़तवा देते हो कि हमारे बच्चे सड़क पर भीख मांगेंगे कि इस पर बहस इसलिए नहीं होती कि आप नामवर है आप सिंह है कि आपका अनुराग है कि आपको  अभिव्यक्ति के मायने हर बार क्यों नहीं दिखते ...
नहीं दिखी मुझे बारीश कि आज के  दौर में सबसे कल मुहाँ शब्द राहत बन चूका है कि राहत मिलती नहीं दिखती नहीं बस पढ़ने को मिलती है .पढने को अब भी वही मिलता है जिसे आप पढ़ाना चाहते हो कि बस इसके आगे कुछ नहीं पढने के लिए तभी आप बड़े बड़े आँख में घुसाने वाले अक्षरों में लिखते हो ,कण कण में भगवान .
           हमें तो पहले ही पता था हमारे ज्ञानियों ने पेले ही लिख दिया था.अब के रे हो कि भोत बड़ा काम कर दिया .हमारा बड़ा दिखता नहीं ..वा  जी वा..
             न हत्याकांड दिखे न नरसंहार में बरी हुए फैसले की जानकारी  मिलती है इन्हें.
ओ बरखा रानी जरा जमकर बरसो ...कि उमस बहुत है ..मन नहीं लग रहा है ..किसान ,खेत ,फसल ,मजदूरी ....अजी छोडो उनकी चिंता करने वाला है. अभी अभी तो घोषणा की है कण कण में भगवान है ..भजन कीर्तन यज्ञ हवन करों ...पापियों, भोजन करवाओं दान दक्षिणा दो ..कि कुपित है भगवान ..उन्होंने अभी अभी दूत भेजा है ...कलयुग है. कलयुग में कोई समझता ही नहीं ..हम तो सुरु से केते  आये है कलजुग हे कलजुग ..भोगना पड़ेगा ..भोगो
        भटक गया लिखने वाला कि आप नहीं भटके आप तो शुरू से सही रस्ते पर जा रहे है .सही रास्ता तो वही है जिस पर आप चल रहे है बाकि तो गलत रसे पर है बुरी सोहबत वाले .वों देखों वों टी वी में बता रहा है दिल्ली में लगा जाम .
       देखों कितनी लंबी है कतार .कार ही कार .रेंग रही है .सरक रही है .बताने वाला सरक गया  है.कि मानसून का मतलब उसके लिए तभी होता है जब दिल्ली की सड़क अपनी ओउकात दिखाती है.उसकी कोई नहीं सुनता कि इतने कार लायक नहीं है दिल्ली ,इंदौर ...कि कारवालों के लिए बनाया जाए समुन्दर में शहर कि अम्बानी रहे उधर ..
इधर बारीश नहीं हो रही है तुम पढ़े जा रहे हो आलतू फालतू ...आ बला को टाल तू ..काली कलकत्ते वाली ..तेरा बचन न जाये खाली ..बच्चा लोग बजाओं जरा जोर से ताली ..
  चलों .आगे बढ़ों अच्छा पढ़ो ....कुछ भी लिखना मत .लिखना एकाधिकार का क्षेत्र था .भूले नहीं हो कि हो गया अतिक्रमण ..बोल सकते नहीं हो गली में बस पढ़ते हुए चलते बनो .

झोपड़पट्टी के मासूम फूलों का झुंड

                     जिंदगी,झोपडपट्टी की अंधेरी संकरी गलियों में कदम तोड़ देती है और किसी को   भी पता नहीं चलता है।जीवन जिसके मायने किसी को भ...