tag:blogger.com,1999:blog-2960965171965816877.post208809492753033759..comments2023-07-12T10:51:58.054-07:00Comments on Kailash Wankhede: अगली बार....कविताkailashhttp://www.blogger.com/profile/05658982773601772565noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2960965171965816877.post-12458946443176746782012-06-25T19:56:12.394-07:002012-06-25T19:56:12.394-07:00प्रेम..विद्रोह ..और यथास्थिति का सार्थक प्रतिरोध ....प्रेम..विद्रोह ..और यथास्थिति का सार्थक प्रतिरोध .....किस सहजता से घुल मिल जाते हैं एक सामाजिक यथार्थ को अनावृत करती इस ख़ूबसूरत कविता में ....बधाई !!संतोष कुमार चौबेhttps://www.blogger.com/profile/14678422623297138411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2960965171965816877.post-43198274084739579982012-06-25T18:22:35.497-07:002012-06-25T18:22:35.497-07:00पहला हर्फ़ और हिज्ज़ा पढ़ते समय ये लगा कि ये कोई प...पहला हर्फ़ और हिज्ज़ा पढ़ते समय ये लगा कि ये कोई प्रेम कविता है लेकिन दूसरे खंड में आते आते यह एक विद्रोही प्रेम में बदल गया और अंत में ये तेवर कि "कि एक अदद जबान भी रखता हूँ,तुम अपने कान सलामत रखना,अगली बार,जरुर कहूँगा"! क्या बात है कैलाश भाई ! इसी अंतिम दो-तीन पंक्तियों में सारा सार निकल के आ जाता है ! बधाई आपको और आभार पढवाने के लिए !Santoshhttps://www.blogger.com/profile/15733814630193589718noreply@blogger.com