Sunday, January 20, 2013

कविता -तुम इतनी मासूम लगी मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते है


तुम इतनी मासूम लगी मुझे कि तुम्हारे भीतर  बुद्ध दिखते है
                                                         --- कैलाश वानखेड़े  

पीर बाबा की मजार पर दुआओं की कतार में भेड़ बनने की बजाय तुम घूमती रही
 आकर्षक नकली जेवर लुभा न सकें तुम्हें
बंद स्कूल में गुलाबी कपड़ों में खेला गया आखरी दिन की यादें
सहेली ,वह टीचर जिसे कर्फ्यू के बाद आना था ..
किसकी तलाश में गई थी गुल मकई,पीर बाबा की मजार पर  ?

Saturday, January 19, 2013

कहाँ जाओगी ,दुर्गा ... कविता

                                                         ---- कैलाश वानखेड़े 

जल रही है  आँख अभी जबकि पढ़ नहीं पाया पूरा अखबार
कि फेसबुक के सारे अपडेट पढ़ देख नहीं पाया
बस दिखी तस्वीर दुर्गा की
संदीप की वाल से उदय प्रकाश की  कविता तक आते आते मेरी आँखों में
धुंधलका आ गया
इनकार कर रहा है कोई भीतर से
चल गोली खा और सो जा .

Friday, January 18, 2013

तुम लोग

 - कैलाश वानखेड़े 
                               
       घर के भीतर चूल्हे के अंदर कसमसाती है आग. कागज पर सवार होकर आग गीली लकड़ियों के उपर चढ़ती है और दम तोड़ने लगती है. कागज जलाने से पहले पढ़ती है उन पर लिखी हुई इबारत को. उनमें लिखे हुए इतिहास को कि पोथी-पुराण ही जले, तभी कागज खत्म हो जाते है. गीली लकड़िया मुहं छिपाकर हंसती है कि कर ले जितना जतन करना हो, हम इन झूठो से राख नही होने वाले है. आग में इन्हें ही भसम हो जाना है कि तभी उठाती है घासलेट, रत्नप्रभा.मैं एकटक देखता ही रहा रत्नप्रभा को कि कागज पढ-पढकर छांटने के बाद अब क्या करने वाली है. धुएं की हलकी परत में लालपन उसकी सफेद आंखों के भीतर छा गया है . फूंक मारते-मारते थक गई है कि अब आखरी रास्ता बस घासलेट है. आग बनाने वाली लडकियां जानती है, इस रास्ते को.वह घासलेट का पाँच लीटर का केन उठाती है. कबाड़ी की दुकान से दस रुपये में खरीदा हुआ ये सनफ्लावर तेल का डिब्बा, घासलेट का बसेरा बना हुआ है. गीली लकड़ियों के उपर डालती है घासलेट. घासलेट की बूंदों की गिनती मैनें बीवी के मुंह से सुनी. जब मैं मटके से पानी निकालकर पी रहा हूं तब, यह ग्यारहवीं बूंद थी और रत्नप्रभा की जबान ने कहा, ओह !

Wednesday, January 16, 2013

हाँ मै दलित हूँ

मेरे माथे पर नहीं लिखा है
लेकिन मेरा चेहरा बोलता है
बोलते है घुसर फुसुर करते हुए
सैकड़ों मुहँ धारी
पढ़ लेते है कागजात
पता लगा लेते है इधर-उधर से.
जब मालूम न पड़े तो
पूछ लेते है
मराठा हो
बामन ..
रुकता है
बुलवाने के लिए मेरे मुहँ से मेरी जाति
क्या है आप ..

Tuesday, January 15, 2013

किती बुश आणि कितेक मनु(मराठी अनुवाद )

दिवस मावळतीला गेला आणि नेमका मूड खराब असला की बी. डी. ओ. साहेबांच बोलावणं आलाच समजा. कर्मचारीही मग त्याची वाटच पाहत असतात पण बोलावणं आलं की लगेच जाणार, असं थोडाच असतं. जाणून-बुजून उशिरा जाण्यात त्यांना मजा येते,खूप बरं वाटतं त्यांना की काही क्षण बी डी ओ मनातल्यामनात कुढत राहावेत. खूपच त्रास दिला सल्याने ! लवकर गेलो नाही म्हणून हजार गोष्टी ऐकवतो,ओरडतो. तर आता घे बेट्या ! असा विचार करूनच ते प्रवेश करतात. त्यांना माहित आहे की सगळेच बी. डी. ओ. पहिल्यांदा सरकारला शिव्या घालतात. म्हणून आपलं काय जातं? सरकारचं जातं ! शर्मा बाबून बसण्यापूर्वीच म्हटलं ह्या देशाची सिस्टम खूपच खराब आहे साली.
समजतच नाहीत आदेश. आता हेच पहा .....fax आलेला कागद पुढे करतात "वर बसलेल्या मादर.......नां अक्कल नावाची चीजच नाही. जसं बाबू म्हणेल त्यावर कोंबडा उमटवला म्हणजे झालं. ह्या वरच्या साहेबानं तर कहरच केलेला आहे. माहित नाही काय होईल ह्या देशाच?" बी डी ओ fax वाचत-वाचत बोलला .

Monday, January 14, 2013

तू इतकी निरागस वाटलीस की तुझ्यात बुद्ध दिसले मला..


पीर बाबाच्या मजारीवर ,दुव्यांच्या  रांगानं मधे , मेंढरू  बनण्या  पेक्षा तू  फिरत राहिलीस
सुंदर नकली दागिने  आकर्षित करू  शकले नाही तुला
बंद शाळत गुलाबी कपड्यां मधे खेळल्या गेलेल्या शेवटच्या दिवसाच्या आठवणी
कुणाच्या शोधात गेली  गुल मकई  पीर बाबाच्या मजारी वर ?
खरं -खरं सांग कि काय आपल्या शालेवर तालिबान वार करेल ?

Saturday, January 12, 2013

कविता : लाठी

बहुत ही अजीबोगरीब सपने देखता हू
उसी तरह नहीं सोचता हूँ
दिमाग के भीतर किल ठोंक दी है हुक्मरान ने
किल के गले में तानकर स्प्रिंगनुमा तार अटका दिया है
उसपर लगातार डाला जा रहा है कुछ तो भी
जबकि उसी स्प्रिंगनुमा तार की जरुरत है माँ को ताकि
दरवाजे के दोनों सिरों पर उसे खीचकर
डाल सके पर्देनुमा कपडा लेकिन ये हो न सका तो
सफ़ेद नाड़े को जिम्मेदारी सौंप दी गई कि वह पर्देनुमा कपड़े को उठाकर खड़ा रहे

Thursday, January 10, 2013

खापा

   कहानी : कैलाश वानखेड़े 


सभीको दिखती है दूर से अमराई.गांव वाले हो या शहर के बाशिन्‍दे  किसी से भी पूछा जाये तो वह इसे शहर की सीमा से बाहर बतायेगा लेकिन अमराई शहर की सीमा के भीतर है. मोटी किताबों के रखवाले कहते है,लोगों का क्‍या हैउन्हें कुछ आता जाता नहीं इसलिए उन्हें मालूम नहीं.मालूम नहीं ,इस बात को इतनी बार बोला-लिखा गया कि मालूम नहीं .अमराई के पास आने के बाद दूर-दूर तक विरान जमीन दिखती है जिसे  खेत कहा जाता है.विरान खेतों को खरीद लिया गया हैखरीदी हुई विरान होती है.खेत विरान करने के बाद कॉलोनी आबाद होती है.अमराई से लगा सडक के पास खडा दिखता है आम का ठेलाठेलें के साथ होता है एक बुढा.जब नहीं दिखता बुढा तो दिखतीहै बुढिया तब होती है साथ में एक लडकी आठ-दस साल कीजो बकरियों के साथखेलती दिखती है.दिखतें है ढेर सारे आम के अलावा जामुन से आधी भरी टोकरी.खाली हिस्‍से के जामुन को जामुनों का शिखर बनाने के लिए जमाये हैएक के उपर ताकि दिखे दूर से ही कि ये जामुन है.शिखर दिखाने के लिए ही बनाये जाते है .जामुन पहचान लेऔर जबान खराब होने के डर को छोडकर खरीद ले. यहॉ जामुन के पेड़ नहीं है. पेड़ है आम केहर पेड़ पर आम.अमराई की तरह होता होगा प्राइवेट स्कूल जहाँ घनी ठंडी छाया तले खूब खेलने -पढने के बाद पेड़ पर चढ़कर आम जामुन खाने को मिलता होगा.समर के दिमाग में स्कूल के साथ साथ आम चला आया .

Wednesday, January 2, 2013

सावित्री-जिजाऊ जन्मोत्सव {3जनवरी से 12जनवरी }

सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन से जिजाऊ माता (शिवाजी महाराज की मां )के जन्मदिन तक दस दिवसीय जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है . नारे लगाते हुए ,नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जोर शोर से कार्यक्रम की शुरुआत अपने अपने तरीके से की जाती है .बोरखेडी व मोताला{बुलडाना } में विगत पन्द्रह वर्ष से जन्मोत्सव का आयोजन  लेखिका ,कवयित्री व प्राचार्य के नेतृत्व में किया जाता है .इस बार का आयोजान दामिनी को समर्पित किया गया है .दामिनी की जीवटता ,जीने के भरपूर हौसले और बलात्कारियों से जी-जान से लड़ने के जज्बे को स्त्री ताकत का प्रतीक माना गया .वह मरते दम तक जीना चाहती थी ,उस चाहत को सलाम .
सावित्रीबाई ने पढ़ना लिखना सिखा और लड़कियों की पहली शाला खुलवाने में पति की सहयोगी बनकर पहली महिला शिक्षिका बनी .

झोपड़पट्टी के मासूम फूलों का झुंड

                     जिंदगी,झोपडपट्टी की अंधेरी संकरी गलियों में कदम तोड़ देती है और किसी को   भी पता नहीं चलता है।जीवन जिसके मायने किसी को भ...