Saturday, October 27, 2012

कहानी 'घंटी' पर मिथिलेश वामनकर जी के विचार



                     आपकी लिखी कहानी ‘घंटी’ पढ़ी, एक स्तरीय कहानी है | विशेष यह कि एक अधिकारी के भीतर बैठे सृजनशील लेखन ने उस अंतिम पंक्ति में बैठे व्यक्ति ‘चपरासी’ को कहानी का महानायक बना दिया जिससे कहानी का स्वरुप अनायास ही विराट बन पड़ा | कहानी के नायक काका उर्फ मांगीलाल चौहान के किरदार का हँसमुख, काम के प्रति सजग होना, मेहनती और तनिक मर्यादित भीरुता का होना वाकई ऐसे किरदारों को सामने ले आता है जो आज हमारे आसपास दिखाई दे जाते है लेकिन उनमे हम नायकत्व की खोज नहीं कर पाते है | और कार्यालयीन माहौल का बाजरिया मिश्रा साहब अच्छा वर्णन है | झूठ कैसे इतिहास बन जाता है ये पंक्तियाँ प्रभावशाली है-

Monday, October 15, 2012

कविता "कहाँ जाओगी, दुर्गा" का मराठी अनुवाद

कुठे जाणार, दुर्गा 

जळत आहेत डोळे आता कि अजुन वाचला नाही मी पूर्ण पेपर
फेसबुक चे सारे अपडेट्स सुद्धा पाहू-वाचू शकलो नाही
बस्स दिसली फोटो दुर्गा ची
संदीपच्या वाल-वरून उदयप्रकाशच्या कविते पर्यंत येता-येता माझ्या डोळयात धुंदी आली
नकारत आहे कोणी माझ्या आतून
चल गोळी खा, झोपी जा

Sunday, October 7, 2012

चूल्हा.....कविता

कैलाश  वानखेड़े

बुरी तरह से थका हुआ अँधेरा करता है इंकार
अभी नहीं जाऊँगा और सो जाता है बडबडाते हुए
सुकून से दो पल भी सोने नहीं देते है.

उसी वक्त दिमाग के भीतर का अलार्म सोने नहीं देता उसे
पैरों के गले में पड़ी उम्मीद जगा देती है
कि चूल्हा सुलगाने के लिए आग धुएं के साथ
छिपमछई खेलती है
आँखों में धुंआं चढ़कर लिपटता है
कि राजमार्ग को जोडनेवाला फ्लाईओवर का पुल
छीन लेता है धुएं को और डरा देता है
आज अगर कहा कम है दाम तो दम निकाल लेंगे
बोल कहाँ जायेगी
दाम में से निकालकर दम को जान देने
पता है उसका पत्ता ...

झोपड़पट्टी के मासूम फूलों का झुंड

                     जिंदगी,झोपडपट्टी की अंधेरी संकरी गलियों में कदम तोड़ देती है और किसी को   भी पता नहीं चलता है।जीवन जिसके मायने किसी को भ...