Wednesday, June 20, 2012

समझ गये ना.....कविता

समझ  गये ना


कुछ ऐसा ही ख़याल आया था लेकर लाउडस्पीकर
कहूँ
तुम इसे चिल्लाना कहोंगे
कहोंगे
जो भी कहना है शालीनता से कहो
कहो सुर में
न हो सुर तो कर्णप्रिय लगे
कर्णप्रिय के साथ लय हो ताल तो जरुरी ही है
और सबसे बड़ी बात तुम चुप नहीं बैठ सकते हो
अपना काम करों ये क्या लिखते हो ?
हम है न लिखने के लिए
हम तुम्हारी आवाज बनेंगे तुम्हारे दर्द को उकेरेंगे

हिदायत है सलाह या चेतावनी

दीवार पर टंगी हुई किल के बारे में ,चलो देखते है कौन बेहतर लिख सकता है
बेहतर ...डराता है शब्द .
बेहतर लिखना  ही लिखना होता  है


लिखने के बाजार में फैला रखे है
सजाये है ढेर सारे  विषय
उन्हीं पर हमारे जैसा या फिर पूर्वजों जैसा लिखों
लिखों जो मानदंड स्वीकृत है उस तरह से .

हम नाम देखेंगे
उस पर लिखेंगे
पढ़ने को वक्त नहीं है
हम तो नाम से ही समझ जाते है
बहुत हुआ तो एक लाइन ही काफी है
हांड़ी में चावल का एक दाना ..
विरासत है समझने की .

समझ गये ना ?
21 june 2012

No comments:

झोपड़पट्टी के मासूम फूलों का झुंड

                     जिंदगी,झोपडपट्टी की अंधेरी संकरी गलियों में कदम तोड़ देती है और किसी को   भी पता नहीं चलता है।जीवन जिसके मायने किसी को भ...